Sunday, 15 June 2025

रिटायरमेंट

_तक़रीबन 26 साल नौकरी करने के बाद सुरेश बाबू इसी महीने रिटायर होने वाले थे। वे एक प्राइवेट कंपनी में आदेशपाल (चपरासी ) के पद पर कार्यरत थे।

   एक तरफ़ जहाँ सुरेश जी को इस बात का सुकून था- कि चलो अब तो एक खड़ूस, बत्तमीज औऱ क्रूर बॉस से छुटकारा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर उन्हें इस बात की भी चिंता सता रही थी- कि रिटायरमेंट के बाद अब उनका समय कैसे बीतेगा-औऱ उनपर जो जबरदस्त आर्थिक जिम्मेदारी है,उसका निर्वहन वे कैसे करेंगे.......??

       दरअसल सुरेश बाबू को एक मात्र लड़की थी जिसकी पढ़ाई औऱ फ़िर ब्याह की चिंता उन्हें खाए जा रही थी।

      रिटायमेंट के बाद इस महंगाई में घर के ख़र्च के साथ साथ बेटी की शादी उनके लिए एक बड़ी चुनौती से कम न थी।

         उपर से उनकी बीमार पत्नी के इलाज़ का ख़र्च अलग से मुँह बाए खड़ा था।

      _हालांकि लगभग 60 कर्मचारियों वाले उस दफ़्तर में अपने सुप्रीम बॉस सहित कुछ लोगों के बुरे बर्ताव के कारण वे मन ही मन बड़े दुखी रहते थे।

   फ़िर भी जब महीने की एक तारीख़ को उनके हाथों पर उनकी तनख्वाह आ जाती थी तब उनका सारा दुख दर्द फ़ुर्र हो जाता था।

            सुरेश बाबू ख़ुद भी शारीरिक रूप से दुरुस्त न थे। उनकी याददाश्त तो कुछ कमजोर हो ही चली थी, उनका अब हांथ भी कांपने लगा था। न चाहते हुए भी कुछ न कुछ गलती अक़्सर उनसे भी हो ही जाती थी।

      वे क़भी दफ़्तर की सफ़ाई करना भूल जाते तो क़भी चाय में चीनी डालना।

    _क़भी कभार तो गंदे ग्लास से ही किसी कर्मचारी को पानी पिला देते थे जिसके लिए उन्हें कुछ न कुछ भला बुरा सुनना पड़ता था।

      _फ़िर भी सब कुछ चलते जा रहा था।


आख़िरकार वो दिन भी आ ही गया- जिस दिन सुरेश बाबू का दफ़्तर में आख़री दिन था।

      सुरेश जी वक़्त से कुछ पहले ही दफ़्तर पहुँच कर अपने नियमित कार्य में जुट गए। सबकुछ रोज़ की ही तरह था,बस आज दफ़्तर में ख़ामोशी कुछ ज़्यादा थी।

शाम में जब आख़री बार दफ़्तर से घर जाने का वक़्त हुआ तो सुरेश बाबू ने टूटे मन से सोचा कि अंतिम बार खड़ूस बॉस के केबिन में जाकर उससे मिल लिया जाए- लेकिन उन्हें बताया गया- कि अन्य कर्मचारियों के साथ बॉस एक जरुरी मीटिंग कर रहे हैं, फ़िलहाल उन्हें कुछ देर इंतज़ार करना होगा।_

        दो घंटे इंतज़ार के बाद भी जब मीटिंग ख़त्म नहीं हुई- तो सुरेश बाबू मन ही मन चिढ़ गए- औऱ बॉस को कोसने लगे......साला क्या अहंकारी आदमी है, सिर्फ़ एक मिनट के लिए मुझें बुलाकर मिल लेता ...अकड़ू साला।


   *_अंत में मायूस होकर सुरेश बाबू ने बिना बॉस से मिले ही अपने घर लौटने का मन बना लिया,ठीक तभी किसी ने आवाज़ दी....साहब तुम्हें बुला रहे हैं ।_*

      सुरेश बाबू झटपट अंदर दाख़िल हुए- लेकिन बॉस के केबिन का नज़ारा कुछ बदला- बदला सा था। डडडडछसुरेश जी को देखते ही सभी कर्मचारियों ने ज़ोर से ताली बजाकर उनका गर्मजोशी से स्वागत किया ।

     फ़िर बॉस ने मेज़ पर रखे एक केक को काटने के लिए सुरेश जी को धीरे से इशारा किया।

         *_पार्टी समाप्ति के बाद अब बॉस ने बोलना शुरु किया.... सुरेश, हम सब ने आज मिलकर सामुहिक रूप से ये फैसला लिया है कि तुम्हें फ़िलहाल नौकरी से कार्यमुक्त न किया जाए औऱ तुम्हारी सेवाएं पहले की तरह ही बहाल रखी जाए- क्योंकि हमें एक ईमानदार,जिम्मेदार औऱ वफ़ादार व्यक्ति की सख़्त आवश्यकता है।_*

            *_कुछ मामूली लापरवाहियों को अगर नज़रंदाज़ कर दिया जाए तो तुम एक बेहद ही कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति हो।_*

              *_तुम्हें तुम्हारी सेवाओं के बदले प्रत्येक कर्मचारी की तरफ़ से महीने के अंत में पाँच सौ रुपये दिए जाएंगे।_*

     *_हालांकि ये हमारे ऑफिस के नियम के खिलाफ है,फ़िर भी तुम्हारी आर्थिक जरुरतों के देखते हुए तुम्हारे लिए ऐसा करना पड़ रहा है लेकिन ध्यान रहे तुम्हारी गलतियों के लिए तुम्हें मिलने वाली डांट में कोई रियासत नहीं मिलेगी।_*

       *_बॉस ने अपनी बातों को बीच में रोकते हुए रूपयों का एक बंडल सुरेश बाबू के हाथों में थमाया औऱ फ़िर बोलना शुरू किया....आज ही ये पाँच लाख रुपए हम सब ने मिलकर तुम्हारे लिए जमा किए हैं- ताकि तुम अपनी बेटी की शादी धूमधाम से कर सको।_*

          *_बॉस ने जैसे ही अपनी वाणी को विराम दीया- तालियां फ़िर से गड़गड़ा उठी।_*

     *_सुरेश बाबू रोते हुए बॉस के चरणों में झुक गए- लेकिन बॉस ने उन्हें पकड़कर अपने गले से लगा लिया।_*

  _*ऑफिस से निकलने के बाद डबडबाई आँखों को लेकर सुरेश बाबू अपने घर की ओर जाते हुए बस यही सोच रहे थे कि आज तक जिन लोगों को वे खड़ूस औऱ बेरहम समझ रहे थे,वे हक़ीक़त में कुछ औऱ ही निकल गए।*_

             _अक़्सर हमारे नकारात्मक विचारों के कारण किसी भी व्यक्ति के प्रति हमारे मन में जो धारणा बन जाती है- वो हमेशा सही नहीं होती। क़भी क़भी लोग इतने भी बुरे नहीं होते- जितने हम उन्हें मान बैठते हैं।_

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 सदैव  प्रसन्न रहिये।जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।।

Monday, 3 February 2025

मेरा 'राम' तो एक ही है

 मेरा 'राम' तो एक ही है 


एक बार की बात है कि कबीर दास जी हमेशा की तरह अपने काम में मग्न होकर राम नाम रट रहे थे। 

तभी उनके पास कुछ तार्किक व्‍यक्ति आते हैं। उनमें से एक व्‍यक्ति उनसे पूछता है.. “कबीर जी आपने यह गले में क्‍या पहन रखा है?”

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कबीर जी कहते है.. “यह कंठी है?”  (कंठी यानि गले में पहनी जाने वाली रूद्रा्क्ष की माला)

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तब दुसरा तार्किक व्‍यक्ति उनसे प्रश्‍न करता है- “भाई अपने माथे पर यह क्‍या लगा रखा है?”  

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“इसे तिलक कहते है मेरे भाई!” कबीर जी कहते हैं।

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उत्‍तर सुनकर एक अन्‍य तार्किक व्‍यक्ति फिर से उनसे प्रश्‍न करता है- “आपने, यह हाथ में क्‍या बांध रखा है? आप क्‍या कर रहे हो?

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यह सुनकर कबीर जी कुछ उन लोगों को कहते हैं-  “मैं राम राम रट रहा हूँ। गुरु जी की आज्ञा है, राम नाम के भीतर सकल  शास्त्र पुराण श्रुति का सार है। इसलिए मैं ‘नाम’ जप रहा हूँ। 

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यह सुनकर उनमें से एक व्‍यक्ति कहता है, “अच्छा तो तुम राम नाम जपते हो! तो राम का भजन करते हो!

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“हां! मैं श्री राम का भजन करता हूँ।”-  कबीर जी बोले।

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“तो फिर कौन से राम का भजन करते हो?”  उस व्‍यक्ति ने कबीर जी से पूछा।  

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“कौन से राम? क्‍या राम भी बहुत सारे हैं?”  कबीर जी ने कहा।  

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तो उनमें से एक व्‍यक्ति ने कहा, “लो इन्‍हें यह तो पता नहीं कि कौन से राम का भजन करते हो, और लग गए भजन करने। 

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जिसे यही नहीं पता कि राम कितने तरीके के होते हैं, तो भजन का क्या फल?  

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अब यह कहकर वे तार्किक व्‍यक्ति वहां से चलते समय कबीर जी को एक दोहा भी सुना गए।  


एक राम दशरथ का बेटा,

एक राम घट-घट में लेटा; 

एक राम का सकल पसारा,

एक राम सभी से न्‍यारा;

इन में कौन-सा राम तुम्‍हारा? ।।      


अब कबीर जी सोचने लगे कि मुझे तो यह पता ही नहीं कि राम भी बहुत हैं। मैं तो केवल यही जानता हूँ कि एक ही राम हैं। ये अच्‍छा संशय मेरे मन में डाल गए हैं। 

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पूछते हैं कौन से राम का भजन करते हो? यह सब जब वह सोच रहे थे, तो तभी उन्‍हें अपने गुरु जी की कही बात याद आ जाती है, गुरू जी ने कहा था, कोई संशय हो तो उसका निवारण कर लेना।  

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तब कबीर जी ने सोचा इस संशय का निवारण अपने गुरुजी के पास जाकर ही करता हूँ। 

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बस फिर क्‍या था कबीर जी पहुँचे अपने गुरुजी के पास। गुरू जी को प्रणाम कर एक ओर हाथ बांधकर खड़े हो गए। कबीर जी को देखकर, गरू जी बोले आओ कबीर, क्या बात है?

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तब कबीर जी बोले-  “गुरु जी! एक अजीब सा संशय चित में आ गया है।  

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“कौन सा संशय” गुरू जी ने पूछा?

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कबीर जी बोले, “गुरू जी कुछ तार्किक विद्वान मेरे पास आए थे। मैं बैठा आपकी आज्ञा से राम नाम का भजन कर रहा था। 

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तब वे मुझसे पूछने लगे क्‍या कर रहे हो कबीर? मैंने कहा, राम-राम रट रहा हूँ।

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फिर वह पूछने लगे कि कौन से राम का भजन कर रहे हो? तब हमने उनसे पूछा कि क्‍या राम भी बहुत सारे होते हैं क्‍या? 

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तो वे मेरे इस प्रश्‍न के उत्‍तर में मुझसे बोले “हाँ” और क्‍या तुम्‍हें यह भी नही पता क्‍या? जाते जाते मुझे एक दोहा भी सुनाकर चले गए हैं! वह दोहा है…..  

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एक राम दशरथ का बेटा,

एक राम घट-घट में लेटा; 

एक राम का सकल पसारा,

एक राम सभी से न्‍यारा:

इन में कौन-सा राम तुम्‍हारा? ।।      

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यह सुनकर गुरुजी बहुत खुश हुए और बड़े जोर से हँसने लगे। 

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हँसते हुए कबीर से कहने लगे- “बेटा! ऐसी बात करने वाले एक दिन नहीं तुम्‍हारे जीवन में, जीवन भर आएँगे। पर तुम्हें सजग रहना होगा। 

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देखो यह सृष्टि विविधमयी है। जिसकी आँख पर जैसा चश्मा चढ़ा होता है, उसको भगवान का वैसा ही रूप दिखाई देता है। 

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कोई परमात्मा को ‘ब्रह्म’ कहता है; कोई ‘परमात्मा’ कहता है; कोई ‘ईश्‍वर’ कहता है; कोई ‘भगवान’ कहता है। लेकिन अलग-अलग नाम लेने से परमात्मा अलग-अलग नहीं हो जाते।

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इसलिए जो राम दशरथ जी का बेटा है; वही राम घट घट में भी लेटा है; उसी राम का सकल पसारा है; और वही राम सबसे न्यारा भी है। लेकिन एक बात है इस दोहे मे


इस दोहे में ‘एक राम ’ चारो पंक्ति में ही एक ही हैं! तो बेटा! इस दोहे का अर्थ क्‍या है? 

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तो कबीर जी बोले- वही राम दशरथ का बेटा, वही राम घट-घट में लेटा, उसी राम का सकल पसारा, वही राम सभी से न्‍यारा।

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तब गुरू जी ने कबीर को समझाते हुए आगे कहा-

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“जब राम सभी जीवो के भीतर विराजमान रहता है, तो सबके घट- घट में व‍ह व्‍यापक हुआ ना और राम ने ही इस सृष्टि को रचाा हैं, तो यह सब पसारा उन्‍हीं का है। 

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लेकिन इस सृष्टि की रचना करने के बाद भी वह इस सृष्टि में फसते नहीं हैं। इसलिए वह सबसे न्यारे भी हैं।


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