Monday, 3 February 2025

मेरा 'राम' तो एक ही है

 मेरा 'राम' तो एक ही है 


एक बार की बात है कि कबीर दास जी हमेशा की तरह अपने काम में मग्न होकर राम नाम रट रहे थे। 

तभी उनके पास कुछ तार्किक व्‍यक्ति आते हैं। उनमें से एक व्‍यक्ति उनसे पूछता है.. “कबीर जी आपने यह गले में क्‍या पहन रखा है?”

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कबीर जी कहते है.. “यह कंठी है?”  (कंठी यानि गले में पहनी जाने वाली रूद्रा्क्ष की माला)

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तब दुसरा तार्किक व्‍यक्ति उनसे प्रश्‍न करता है- “भाई अपने माथे पर यह क्‍या लगा रखा है?”  

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“इसे तिलक कहते है मेरे भाई!” कबीर जी कहते हैं।

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उत्‍तर सुनकर एक अन्‍य तार्किक व्‍यक्ति फिर से उनसे प्रश्‍न करता है- “आपने, यह हाथ में क्‍या बांध रखा है? आप क्‍या कर रहे हो?

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यह सुनकर कबीर जी कुछ उन लोगों को कहते हैं-  “मैं राम राम रट रहा हूँ। गुरु जी की आज्ञा है, राम नाम के भीतर सकल  शास्त्र पुराण श्रुति का सार है। इसलिए मैं ‘नाम’ जप रहा हूँ। 

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यह सुनकर उनमें से एक व्‍यक्ति कहता है, “अच्छा तो तुम राम नाम जपते हो! तो राम का भजन करते हो!

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“हां! मैं श्री राम का भजन करता हूँ।”-  कबीर जी बोले।

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“तो फिर कौन से राम का भजन करते हो?”  उस व्‍यक्ति ने कबीर जी से पूछा।  

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“कौन से राम? क्‍या राम भी बहुत सारे हैं?”  कबीर जी ने कहा।  

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तो उनमें से एक व्‍यक्ति ने कहा, “लो इन्‍हें यह तो पता नहीं कि कौन से राम का भजन करते हो, और लग गए भजन करने। 

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जिसे यही नहीं पता कि राम कितने तरीके के होते हैं, तो भजन का क्या फल?  

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अब यह कहकर वे तार्किक व्‍यक्ति वहां से चलते समय कबीर जी को एक दोहा भी सुना गए।  


एक राम दशरथ का बेटा,

एक राम घट-घट में लेटा; 

एक राम का सकल पसारा,

एक राम सभी से न्‍यारा;

इन में कौन-सा राम तुम्‍हारा? ।।      


अब कबीर जी सोचने लगे कि मुझे तो यह पता ही नहीं कि राम भी बहुत हैं। मैं तो केवल यही जानता हूँ कि एक ही राम हैं। ये अच्‍छा संशय मेरे मन में डाल गए हैं। 

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पूछते हैं कौन से राम का भजन करते हो? यह सब जब वह सोच रहे थे, तो तभी उन्‍हें अपने गुरु जी की कही बात याद आ जाती है, गुरू जी ने कहा था, कोई संशय हो तो उसका निवारण कर लेना।  

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तब कबीर जी ने सोचा इस संशय का निवारण अपने गुरुजी के पास जाकर ही करता हूँ। 

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बस फिर क्‍या था कबीर जी पहुँचे अपने गुरुजी के पास। गुरू जी को प्रणाम कर एक ओर हाथ बांधकर खड़े हो गए। कबीर जी को देखकर, गरू जी बोले आओ कबीर, क्या बात है?

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तब कबीर जी बोले-  “गुरु जी! एक अजीब सा संशय चित में आ गया है।  

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“कौन सा संशय” गुरू जी ने पूछा?

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कबीर जी बोले, “गुरू जी कुछ तार्किक विद्वान मेरे पास आए थे। मैं बैठा आपकी आज्ञा से राम नाम का भजन कर रहा था। 

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तब वे मुझसे पूछने लगे क्‍या कर रहे हो कबीर? मैंने कहा, राम-राम रट रहा हूँ।

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फिर वह पूछने लगे कि कौन से राम का भजन कर रहे हो? तब हमने उनसे पूछा कि क्‍या राम भी बहुत सारे होते हैं क्‍या? 

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तो वे मेरे इस प्रश्‍न के उत्‍तर में मुझसे बोले “हाँ” और क्‍या तुम्‍हें यह भी नही पता क्‍या? जाते जाते मुझे एक दोहा भी सुनाकर चले गए हैं! वह दोहा है…..  

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एक राम दशरथ का बेटा,

एक राम घट-घट में लेटा; 

एक राम का सकल पसारा,

एक राम सभी से न्‍यारा:

इन में कौन-सा राम तुम्‍हारा? ।।      

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यह सुनकर गुरुजी बहुत खुश हुए और बड़े जोर से हँसने लगे। 

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हँसते हुए कबीर से कहने लगे- “बेटा! ऐसी बात करने वाले एक दिन नहीं तुम्‍हारे जीवन में, जीवन भर आएँगे। पर तुम्हें सजग रहना होगा। 

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देखो यह सृष्टि विविधमयी है। जिसकी आँख पर जैसा चश्मा चढ़ा होता है, उसको भगवान का वैसा ही रूप दिखाई देता है। 

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कोई परमात्मा को ‘ब्रह्म’ कहता है; कोई ‘परमात्मा’ कहता है; कोई ‘ईश्‍वर’ कहता है; कोई ‘भगवान’ कहता है। लेकिन अलग-अलग नाम लेने से परमात्मा अलग-अलग नहीं हो जाते।

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इसलिए जो राम दशरथ जी का बेटा है; वही राम घट घट में भी लेटा है; उसी राम का सकल पसारा है; और वही राम सबसे न्यारा भी है। लेकिन एक बात है इस दोहे मे


इस दोहे में ‘एक राम ’ चारो पंक्ति में ही एक ही हैं! तो बेटा! इस दोहे का अर्थ क्‍या है? 

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तो कबीर जी बोले- वही राम दशरथ का बेटा, वही राम घट-घट में लेटा, उसी राम का सकल पसारा, वही राम सभी से न्‍यारा।

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तब गुरू जी ने कबीर को समझाते हुए आगे कहा-

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“जब राम सभी जीवो के भीतर विराजमान रहता है, तो सबके घट- घट में व‍ह व्‍यापक हुआ ना और राम ने ही इस सृष्टि को रचाा हैं, तो यह सब पसारा उन्‍हीं का है। 

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लेकिन इस सृष्टि की रचना करने के बाद भी वह इस सृष्टि में फसते नहीं हैं। इसलिए वह सबसे न्यारे भी हैं।


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